Saturday, March 21, 2020

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निर्भया कांड और समाज

निर्भया कांड और समाज 
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Friday, March 20, 2020

देश में बीते 20 सालों में हुई फांसियों का ब्यौरा, निर्भया के दोषियों से पहले इन्हें दी गई थी मौत की सजा

दिल्ली गैंगरेप के दोषियों- मुकेश सिंह, अक्षय सिंह ठाकुर, विनय शर्मा और पवन कुमार गुप्ता - को शुक्रवार सुबह 5.30 बजे तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई। भारत में आजादी के बाद के चार दोषियों को एक साथ फांसी देने का यह दूसरा उदाहरण है। इससे पहले 25 अक्टूबर, 1983 को पुणे की यरवदा जेल में एक साथ पांच दोषियों को फांसी दी गई थी। 1970 के दशक में जोशी-अभ्यंकर हत्या के मामले में 10 लोगों की हत्या के लिए यरवदा जेल में राजेंद्र जक्कल, दिलीप सुतार, शांताराम जगताप और मुनव्वर एस को फांसी दी गई थी। शुक्रवार को दिल्‍ली गैंगरेप में हुई फांसी से पहले बीते 20 सालों में यानी साल 2000 से भारत में चार बार फांसी की सजा दी गई है। प‌‌ढ़िए उन सजाओं का ब्योरा- धनंजय चटर्जी बनाम पश्च‌िम बंगाल राज्य (2004) धनंजय चटर्जी, 18 वर्षीय छात्रा हेतल पारेख की हत्या और बलात्कार का दोषी था। एक अपार्टमेंट में वह सुरक्षा गार्ड के रूप में काम करता था। पीड़िता भी उसी अपार्टमेंट में रहती थी। 5 मार्च 1990 की दोपहर को पीड़िता को उसकी मां ने घर में ही मृत पाया था। हत्या के बाद धनंजय को उस इलाके में दोबारा नहीं देखा गया, इसलिए बलात्कार और हत्या का आरोप उस पर लगा। कोलकाता पुलिस ने 12 मई 1990 को उसे बलात्कार, हत्या और घड़ी की चोरी के आरोप में गिरफ्तार किया था। धनंजय को सभी अपराधों में धनंजय को दोषी पाया गया और अलीपुर सत्र न्यायालय ने 1991 में उसे मौत की सजा सुनाई। इस फैसले को कलकत्ता हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा। धनंजय ने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल और राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के समक्ष दया याचिका दायर की। हालांकि दोनों ने याचिका खारिज कर दी। 14 अगस्त, 2004 को सुबह 4:30 बजे धनंजय को उसके 39 वें जन्मदिन पर अलीपुर सेंट्रल जेल, कोलकाता में फांसी दी गई थी। मोहम्मद अजमल आमिर कसाब बनाम महाराष्ट्र राज्य (2012) कुख्यात 26/11 मुंबई हमले को कसाब समेत 9 आतंकवादियों ने अंजाम दिया था। उन्होंने शहर में एक साथ कई जगहों पर गोलीबारी और बमबारी की थी। आतंकवादियों ने मुंबई के कई प्रमुख स्‍थलों को निशाना बनाया था। अजमल कसाब और इस्माइल खान ने मुंबई स्‍थ‌ित सीएसटी स्टेशन पर हमला किया ‌था, जिसमें 58 लोग मारे गए और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। कसाब की उम्र उस समय मात्र 21 वर्ष थी और उसे उन हमलों में जिंदा पकड़ा गया था। उन हमलों में 166 लोग मारे गए थे। कसाब पर भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने और हत्या समेत 86 अपराधों में मुकदमा चला था। मामले की सुनवाई के दरमियान अभियोजन पक्ष ने कहा कि उन्होंने कबूल किया है कसाब ने आरोप स्वीकार ‌किए हैं, जबकि कसाब के वकीलों का कहना था कि उसे बयान देने के लिए मजबूर किया गया है। कसाब पर मार्च, 2009 से शुरू मुकदमा हुआ था। मई 2010 में उसे एक विशेष अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी। कसाब के वकील ने अपनी पैरवी में कहा था कि उसके मुवक्किल का आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने ब्रेनवॉश किया हैऔर उसका पुनर्वास किया जा सकता है, 7 मई, 2010 को ट्रायल जज एमएल तहलियानी ने टिप्पणी की था कि कसाब को तब तक फांसी पर लटकाया जाना चाहिए, जब तक वह मर न जाए। उन्होंने कहा था कि कसाब मानवीय व्यवहार का अपना अधिकार खो चुका है। कसाब ने सजा के खिलाफ अपील की और मुंबई हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2010 में मामले की सुनवाई शुरू की थी। शुरुआत में सुरक्षा कारणों से वीडियो लिंक के जरिए उसने कार्यवाही में भाग लिया ‌था। उसने उन्होंने व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित होने की मांग की थी, हालांकि कोर्ट ने मना कर दिया था। मुंबई हाईकोर्ट ने फरवरी 2011 में उसकी अपील खार‌िज कर दी थी। जुलाई 2011 में कसाब ने मृत्युदंड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। अदालत में दिए बयान में कसाब ने कहा था कि अभियोजन पक्ष एक उचित संदेह के बाद उस पर लगाए गए आरोपों को साबित करने में विफल रहा है। उसने कहा था कि वह लोगों को मारने और आतंकवादी गतिव‌िध‌ियों का दोषी हो सकता है, लेकिन राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने का दोषी नहीं हो सकता है। 29 अगस्त 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने उसकी अपील खारिज कर दी थी और ट्रायल कोर्ट की सजा को बरकरार रखा था। कसाब ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के समक्ष दया याचिका भी दायर की थी, हालांकि उसे खारिज कर दिया गया। अजमल कसाब को 21 नवंबर, 2012 को पुणे की यरवदा जेल में जेल में फांसी दी गई थी। राज्य बनाम मो अफजल व अन्य (अफजल गुरु का मामला, 2013) 13 दिसंबर 2001 को पांच सशस्त्र आतंकियों ने संसद पर हमला किया था, जिसमें ड्यूटी पर तैनात सुरक्षाकर्मियों को भारी नुकसान हुआ था। आतंकियों ने संसद में घुसने की कोशिश की थी। संसद का सत्र उस समय चल रहा ‌था। हमले में आठ सुरक्षाकर्मियों और एक माली सहित नौ लोगों की मौत हुई थी। 13 सुरक्षाकर्मियों सहित 16 लोगों घायल हुए थे।। 15 दिसंबर 2001 को दिल्ली पुलिस के विशेष टीम ने अफजल गुरु को श्रीनगर से, उसके चचेरे भाई शौकत हुसैन गुरु, शौकत की पत्नी अफसाना गुरु और दिल्‍ली यूनिवर्सिटी में अरबी के लेक्चरर एसएआर गिलानी को कार और सेलफोन से मिले सुराग के आधार पर गिरफ्तार किया था। सभी आरोपियों के खिलाफ 13 दिसंबर को एफआईआर दर्ज की गई थी और उन पर भारत के खिलाफ युद्ध, साजिश, हत्या, हत्या का प्रयास आदि आरोपों के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। बाद में आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) 2002 के प्रावधानों के तहज भी मुकदमा दर्ज किया गया था। 18 दिसंबर 2002 को विशेष अदालत ने अफजल गुरु, शौकत गुरु और एसएआर गिलानी को मृत्युदंड की सजा दी। शौकत की पत्नी अफसान को साजिश छिपाने का दोषी पाया गया और उसे 5 साल की जेल की सजा सुनाई गई। 2003 में दिल्ली हाईकोर्ट ने अफजल गुरु और शौकत गुरु की सजा को बरकरार रखा। मामले में सह-अभियुक्त, एसएआर गिलानी और अफसान गुरु (शौकत हुसैन की पत्नी) को उच्च न्यायालय ने 29 अक्टूबर 2003 को बरी कर दिया था। 24 अगस्त 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने अफजल गुरु की मौत की सजा को बरकरार रखा, जबकि शौकत गुरु की मौत की सजा को कम कर 10 साल की कैद में बदल दिया गया। अफजल गुरु ने सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर की थी, हालांकि वह याचिका खारिज कर दी गई। अक्टूबर 2006 में अफजल गुरु की पत्नी ने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के समक्ष दया याचिका दायर की। जून 2007 में, सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा की समीक्षा के ‌लिए दायर गुरु की याचिका खारिज कर दी। 2010 में शौकत हुसैन गुरु को अच्छे आचरण के कारण तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया था। 3 फरवरी 2013 को राष्ट्रपति ने अफजल गुरु की दया याचिका खारिज कर दिया। अफजल गुरु को 9 फरवरी 2013 को तिहाड़ जेल में सुबह 8 बजे फांसी दी गई थी। याकूब मेमन बनाम महाराष्ट्र राज्य (2015) याकूब मेमन मुंबई बम धमाकों के प्रमुख संदिग्धों में से एक टाइगर मेमन का भाई था। पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट याकूब मेमन पर आरोप था कि वह मुंबई बम धमाकों में शामिल था, जिसके मास्टरमाइंड टाइगर मेमन और अंडरवर्ल्ड माफिया दाऊद इब्राहिम थे। उन धमाकों में 257 लोगों की जान गई थी। पुलिस ने दावा किया कि याकूब मेमन को 5 अगस्त, 1994 को नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार किया गया था। जबकि मेमन का कहना था कि उसने 28 जुलाई, 1994 को नेपाल के काठमांडू में पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया था। 27 जुलाई, 2007 को न्यायमूर्ति पीडी कोडे ने उसे आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के तहत दोषी पाया था। उसे आतंकवादी षडयंत्री, हत्या, आतंकवादी गतिविधियों में सहायता और उकसावे का दोषी पाया गया। उसे अवैध रूप से हथियार और गोला-बारूद रखने और परिवहन का दोषी भी करार दिया गया था और उसे 14 साल से 10 साल तक की कैद और फांसी की सजा दी गई। मेमन ने मौत की सजा कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील की ‌थी, मगर अपील खारिज हो गई थी। उसने अपनी मौत की सजा की पुष्टि के सुप्रीम कोर्ट के के फैसले पर समीक्षा याचिका दायर की थी। 30 जुलाई, 2013 को न्यायमूर्ति पी सदाशिवम ने मौखिक सुनवाई का उसका आवेदन खार‌िज कर दिया और उसकी समीक्षा याचिका भी रद्द कर दी। बाद में 1 जून 2014 को जस्टिस जे खेहर और सी नागप्पन ने याकूब मेमन की फांसी पर रोक लगा दी। महाराष्ट्र सरकार याकूब मेममन की फांसी के ‌लिए 30 जुलाई 2015 तारीख तय की ‌थी। 22 मई 2015 को, मेमन ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक क्यूरेटिव याचिका दायर की। 21 जुलाई 2015 को उसे भी रद्द कर दिया गया। उसने महाराष्ट्र के राज्यपाल के समक्ष दया याचिका भी दायर, जिसे स्वीकार नहीं किया गया था। याकूब मेमन को 30 जुलाई 2015 को नागपुर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी।

COVID 19 के प्रकोप के कारण शराब की होम डिलीवर की मांग करने वाले व्यक्ति पर केरल हाईकोर्ट ने लगाय 50 हज़ार रुपए का जुर्माना

केरल हाईकोर्ट ने उस व्यक्ति को कड़ी फटकार लगाई है, जिसने एक रिट याचिका दायर कर मांग की थी कि बेवरेजेज कॉरपोरेशन को निर्देश दिया जाए कि वह राज्य में उपभोक्ताओं को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से वितरण करने के लिए पीने योग्य शराब उपलब्ध कराने के संबंध में निर्णय ले। न्यायमूर्ति ए.के जयशंकरन नांबियार ने याचिकाकर्ता ज्योथिष पर 50000 रुपये की लागत या जुर्माना लगाया है। याचिकाकर्ता ने निगम के समक्ष अपने ज्ञापन में कहा था कि कामकाज के घंटों के दौरान आउटलेट्स पर अनिवार्य रूप से भीड़ होती है, इसलिए COVID 19 वायरस के प्रकोप ने उसके लिए यह असुरक्षित बना दिया है कि वह अपने पीने के लिए शराब खरीदने एक आउटलेट पर जाए, इसलिए उसने उपभोक्ताओं को शराब की डिलीवरी करने के वैकल्पिक तरीकों पर अपना सुझाव दिया है। न्यायमूर्ति नांबियार ने कहा कि यह झुंझलाहट की पहचान और गुस्से की झलक है जिसके साथ मैं यह निर्णय लिख रहा हूं। रिट याचिका को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि यह 'अवमानना का हकदार' है। न्यायमूर्ति ने कहा कि- नागरिकों को यह महसूस करना चाहिए कि मामलों को फाइल करने पर इस न्यायालय द्वारा लगाए गए प्रतिबंध यह सुनिश्चित करने के लिए है कि न्याय तक पहुंच के लिए नागरिकों के रूप में उनके मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित किया जा सके और उस हद तक उनकी गारंटी दी जा सके, जहां तक संभव है। जिसके लिए ,इस न्यायालय के न्यायाधीशों, वकीलों,क्लर्क और कर्मचारियों के वायरल से संक्रमित होने का जोखिम भी उठाया जा रहा है। जब इस तरह के उपायों को सार्वजनिक हित में इस संस्था द्वारा अपनाया जा रहा है, तो कम से कम मुकदमे दायर करने वाली जनता से यह अपेक्षा तो की जा सकती है कि वह समाज के अपने साथी नागरिकों के हितों के लिए संवेदनशीलता अपनाएं , जिनके भी उन्हीं की तरह एक सुरक्षित स्थान और एक स्वस्थ वातावरण में काम करने के मौलिक अधिकार है। पीठ ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता के स्वार्थ को देखते हुए और समाज में उसी के जैसे लोगों की ,कोई मदद नहीं कर सकता है बल्कि इस पर हर कोई दुख ही जाहिर करेगा। कथित ''अधिकारों'' के लिए उनका जुनून उन्हें उनके उन अनिवार्य ''कर्तव्यों'' के प्रति अंधा कर रहा है ,जो साथी नागरिकों के लिए बनते हैं। हालांकि याचिकाकर्ता के वकील ने रिट याचिका को वापस लेने की अनुमति मांगी, लेकिन अदालत ने उस पर कठोर जुर्माना लगा दिया। न्यायाधीश ने आगे कहा कि- ''न्याय तक पहुंच की कल्याणकारी अवधारणा का मजाक बनाते हुए, जिसकी यह संस्थान गांरटी देने का प्रयास करता है,वर्तमान समय में याचिकाकर्ता द्वारा इस तरह की तुच्छ या फर्जी याचिका दायर करना, इस महान संस्था के कामकाज का भी उपहास बनाता है। उक्त लापरवाह, असंवेदनशील और ढीठ कार्रवाई के लिए याचिकाकर्ता को हल्के में नहीं छोड़ा जा सकता है या जाने नहीं दिया जा सकता है।'' निर्देश दिया गया है कि जुर्माने की राशि दो सप्ताह के भीतर मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में जमा करा दी जाए।




जानिए दंड प्रक्रिया संहिता के उद्घोषणा (ऐलान) और कुर्की संबंधी प्रावधान


दंड प्रक्रिया संहिता 1973 ने न्यायालय को उद्घोषणा और कुर्की जैसी अमूल्य शक्ति प्रदान की है। उद्घोषणा एवं कुर्की किसी भी फरार व्यक्ति को न्यायालय में हाजिर करवाने को बाध्य कर देने के उपयोग में लायी जाती है। उद्घोषणा के माध्यम से जिस व्यक्ति के विरुद्ध वारंट जारी किया जाता है उस व्यक्ति को उस स्थिति में फरार घोषित किया जाता है, जब न्यायालय को यह समाधान हो जाता है तथा यह विश्वास कर लिया जाता है कि ऐसा व्यक्ति जिसके विरुद्ध वारंट जारी किया गया है, वह गिरफ्तारी से बच रहा है। ऐसी स्थिति में न्यायालय व्यक्ति को उद्घोषणा के माध्यम से फरार घोषित कर देता है। उसके बाद कुर्की के माध्यम से उसकी जंगम तथा स्थावर संपत्ति को कुर्क कर लिया जाता है। भारत के किसी भी आपराधिक न्यायालय के पास उद्घोषणा एवं कुर्की सबसे अंतिम हथियार है। इस हथियार के माध्यम से न्यायालय फरार व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष हाजिर होने के लिए बाध्य करता है। जब न्यायालय इस निर्णय पर पहुंच जाता है कि अब जिस व्यक्ति को न्यायालय में बुलाया जा रहा है वह व्यक्ति न्यायालय में नहीं आना चाहता है और वह सदा के लिए फरार हो चुका है, ऐसी स्थिति में न्यायालय उद्घोषणा और कुर्की का सहारा लेता है। उद्घोषणा (ऐलान) भारतीय दंड संहिता की धारा 82 के अंतर्गत फरार व्यक्ति के लिए उद्घोषणा की जाती है। धारा के अनुसार यदि किसी न्यायालय को चाहे साक्ष्य लेने के पश्चात या लिए बिना या विश्वास करने का कारण है कि कोई व्यक्ति जिसके विरुद्ध उसने वारंट जारी किया है फरार हो गया है या खुद को छुपा रहा है, जिससे ऐसे वारंट का निष्पादन नहीं किया जा सकता है तो ऐसा न्यायलय उससे यह अपेक्षा करने वाली लिखित उद्घोषणा प्रकाशित कर सकता है कि वह व्यक्ति विनिर्दिष्ट स्थान में और विनिर्दिष्ट समय पर जो उस उद्घोषणा के प्रकाशन की तारीख से कम से कम 30 दिन पश्चात का होगा, हाजिर हो। उद्घोषणा के प्रमुख तथ्य (अ) यदि अभियुक्त की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी किया जा चुका है और यह विश्वास करने के लिए पर्याप्त कारण है कि अभियुक्त फरार हो चुका है अथवा वारंट का निष्पादन नहीं होने देने के लिए स्वयं को छुपा रहा है तो न्यायलय लिखित उद्घोषणा प्रकाशित करके फरार व्यक्ति से अपेक्षा करेगा कि वह स्वयं को न्यायालय के समक्ष उपस्थित करे। इस तथ्य से समझा जा सकता है कि उद्घोषणा तभी की जा सकती है जब व्यक्ति को फरार घोषित कर दिया है। (ब) न्यायालय ऐसे फरार व्यक्ति की संपत्ति को कुर्क कर सकता है। यदि अभियुक्त फिर भी न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होता है तो कुर्क की गई संपत्ति राज्य सरकार के अधीन रहेगी तथा राज्य द्वारा उसे विक्रय भी जा सकता है। उल्लेखनीय है कि उद्घोषणा के प्रकाशन की पूर्ववर्ती शर्त के रूप में वारंट का जारी किया जाना आवश्यक है अर्थात वारंट जारी किए बिना उद्घोषणा प्रकाशित नहीं की जा सकती है यदि कोई न्यायालय वारंट जारी करने के लिए प्राधिकृत नहीं है तो उद्घोषणा भी प्रकाशित नहीं कर सकता है। (स) जहां कोई व्यक्ति समन जारी होने के पूर्व ही भारत छोड़ देता है तो यह नहीं कहा जा सकता कि वह न्यायिक प्रक्रिया से बचने के लिए भागा है। ऐसी दशा में उस व्यक्ति के विरुद्ध की गयी उद्घोषणा संबंधी कार्यवाही अपास्त किए जाने योग्य होगी। इसके पश्चात अपनाई गई उत्तरावर्ती कार्यवाही भी अपास्त होगी। फरार होने के तात्पर्य नहीं है कि व्यक्ति किसी एक दिन अपने आवास से अनुपस्थित रहे, उसे फरार तभी माना जाएगा यदि वह सदा के लिए अपने आवास पर नहीं रहता है।पुलिस अभियुक्त के घर जाती है परंतु अभियुक्त नहीं मिल पाता है तो यह नहीं कहा जाता कि अभियुक्त फरार हो गया है। उद्घोषणा प्रकाशित करने की रीति संहिता की धारा 82 की उपधारा 2 के अंतर्गत उद्घोषणा प्रकाशित करने की रीति का उल्लेख है। धारा के अनुसार- (1) उस नगर या ग्राम के जिसमें ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है किसी सहज दृश्य स्थान में सार्वजनिक रूप से पढ़ी जाएगी। (2) उस ग्रह या अवस्थान में जिसमें ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है किसी सहज दृश्य भाग पर या ऐसे नगर या ग्राम के किसी सहज दृश्य स्थान पर लगाई जाएगी। (3) उसकी एक प्रति न्याय सदन के किसी सहज दृश्य भाग पर लगाई जाएगी जिसके द्वारा ऐसी उद्घोषणा जारी की गयी है। यदि न्यायालय ठीक समझता है तो वह यह निर्देश भी दे सकता है कि उद्घोषणा की एक प्रति किसी प्रसिद्ध दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित की जाए जहां ऐसा व्यक्ति मामूली तौर पर निवास करता है। कोई उद्घोषणा तभी वैध मानी जा सकती है जब धारा 82 की उपधारा 2 के अंतर्गत बतायी गयी रीति को न्यायालय द्वारा सम्यक रूप से अपनाया जाता है। कुर्की फरार व्यक्ति के लिए उद्घोषणा हो जाने के पश्चात न्यायालय द्वारा कुर्की की कार्यवाही की जाती है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 83 के अंतर्गत फरार व्यक्ति की संपत्ति के कुर्की के प्रावधान दिए गए है। धारा 83 के अनुसार धारा 82 के अधीन उद्घोषणा जारी करने वाला न्यायालय ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किये जायेंगे। उद्घोषणा जारी किए जाने के पश्चात विधि द्वारा निर्धारित अवधि में उद्घोषित व्यक्ति की जंगम या स्थावर अथवा दोनों प्रकार की किसी भी संपत्ति की कुर्की का आदेश दे सकता है। देवेन्द्र सिंह नेगी उर्फ़ देबू बनाम उत्तरप्रदेश राज्य 1994 Cri LJ 1783 (All) के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह कहा था कि संपत्ति की कुर्की का आदेश देने के लिए अदालत को धारा 82 के अंतर्गत की गयी उद्घोषणा के पश्च्यात 30 दिन तक का इंतज़ार करना चाहिए जिसके पश्च्यात ही संपत्ति की कुर्की के आदेश दिए जा सकेंगे। उन परिस्थितियों में, जहाँ वह व्यक्ति जिसके सम्बन्ध में अदालत द्वारा उद्घोषणा की गयी है, वह नियत समय पर अदालत में उपस्थित नहीं होता है, तो उसकी संपत्ति राज्य सरकार के व्ययनाधीन हो जाती है (धारा 85, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अनुसार), हालाँकि इस संपत्ति को 6 माह तक नहीं बेचा जा सकता है। संहिता की इस धारा के अंतर्गत एक परंतु दिया गया है। जिस परंतु के अनुसार यदि न्यायालय को शपथ पत्र द्वारा या अन्यथा या समाधान हो जाता है कि जिस व्यक्ति के संबंध में उद्घोषणा की गई है वह व्यक्ति अपनी कोई जंगम या स्थावर संपत्ति को बेच कर फरार होना चाहता है या फिर उस संपत्ति के किसी भाग को बेचना चाहता है यह फिर समस्त संपत्ति बेचना चाहता है तो ऐसी स्थिति में न्यायालय उद्घोषणा जारी करने के साथ ही कुर्की का आदेश भी दे सकता है। जिस जिले में संपत्ति को कुर्क किया जाएगा उसके मजिस्ट्रेट द्वारा पृष्ठांकन किया जाना जिस भी जिले में कुर्क की जाने वाली संपत्ति स्थित है उस जिले के मजिस्ट्रेट द्वारा पृष्ठांकन किया जाना आवश्यक है। संपत्ति को कुर्क करने वाला न्यायालय संपत्ति को कुर्क करने के लिए प्राधिकृत ही उस स्थिति में हो सकता है जब संपत्ति जिस जिले में स्थित है उस जिले का मजिस्ट्रेट पृष्ठांकन करे। कुर्क की जाने वाली संपत्ति यदि जंगम संपत्ति है तो ऐसी स्थिति में रीति कुर्क की जाने वाली संपत्ति यदि जंगम संपत्ति है तो ऐसी स्थिति में अधिग्रहण द्वारा कुर्क की जाएगी या रिसीवर की नियुक्ति द्वारा की जाएगी। या उद् घोषित व्यक्ति को या उसके निमित्त किसी को भी उस संपत्ति का परिधान करने का प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा की जाएगी। या फिर निम्न रीति में से सब या किन्हीं दो से की जाएगी जैसा न्यायालय ठीक समझे। कुर्की की जाने वाली संपत्ति यदि स्थावर संपत्ति है तो ऐसी स्थिति में कुर्की यदि वह संपत्ति जिसको कुर्क करने का आदेश दिया गया है स्थावर है तो इस धारा के अधीन कुर्की राज्य सरकार को राजस्व देने वाली भूमि की दशा में उस जिले के कलेक्टर के माध्यम से की जाएगी जिसमें वह भूमि स्थित है तथा अन्य दशा भी हो सकती है। कब्जा लेकर की जाएगी रिसीवर की नियुक्ति द्वारा की जाएगी उद्घोषित व्यक्ति को या उसके निमित्त किसी को भी संपत्ति का किराया देने से उस संपत्ति का प्रदान करने का प्रतिषेध करने वाले लिखित आदेश द्वारा की जाएगी। जो रीति बतायी गयी है इनमें से किन्हीं दो प्रकार से या फिर न्यायालय जैसा ठीक समझे, इन रीतियों में से किसी रीति से कुर्क की जाएगी पर कोई भी कुर्की मनमानी नहीं होगी। कुर्क की गयी संपत्ति की वापसी संहिता की धारा 85 बताती है कि यदि कुर्क की गयी संपत्ति में जिस व्यक्ति के विरुद्ध उद्घोषणा की गई है यदि व्यक्ति बताए गए समय के भीतर उपस्थित हो जाता है तो ऐसी स्थिति में न्यायालय संपत्ति को कुर्की से निर्मुक्ति करने का आदेश देगा। यहां पर न्यायालय को यह स्पष्ट आदेश दिए गए है कि यदि व्यक्ति उद्घोषणा के लिए समय के भीतर हाजिर हो जाता है तो ऐसी परिस्थिति में उसकी कुर्क की गयी संपत्ति को निर्मुक्ति दे दी जाएगी। इसके अलावा यदि उद्घोषित व्यक्ति संपत्ति की कुर्की से 2 वर्ष के भीतर न्यायालय में हाजिर हो जाता है या पकड़ कर लाया जाता है और वह न्यायालय में यह साबित कर देता है कि वह किसी वारंट के निष्पादन से नहीं बच रहा था तो ऐसी परिस्थिति में उसकी कुर्क की गयी संपत्ति या उसकी संपत्ति में से कोई भाग बेच दिया गया है तो उस भाग का मूल्य उस व्यक्ति को परिदान कर दिया जाता है। राज्य सरकार किसी भी कुर्क की गई संपत्ति का विक्रय तभी करता है जब विक्रय करना उद् घोषित व्यक्ति के हित में है अन्यथा उसकी संपत्ति को यथास्थिति में रहने दिया जाता है। संपत्ति के स्वामी के हित में संपत्ति का विक्रय किया जाता है तो ऐसा विक्रय कुर्की की तारीख से 6 माह बीत जाने के बाद ही किया जा सकता है पर जीवधन इत्यादि विक्रय किए जा सकते है या फिर वह संपत्ति जो विनाश्वर है। यदि कोई धारा 85 के अंतर्गत दिए गए किसी आदेश से व्यथित है तो वह आदेश के विरुद्ध उस न्यायालय में अपील कर सकता है जहां ऐसी आपराधिक अपील की जाती है।




Wednesday, March 11, 2020

PAN Card पर लिखे 10 अंकों के बारे में कभी सोचा है ?

 PAN Card पर लिखे 10 अंकों के बारे में कभी सोचा है आपने, इसमें छुपी हैं आपसे जुड़ी कई जानकारियां

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। आज के समय में लगभग हर कोई PAN Card का इस्तेमाल करता है। पैन कार्ड कई कामों के लिए जरूरी भी है। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया है कि आप जो पैन कार्ड का इस्तेमाल कर रहे हैं उस पर लिखे 10 अंकों का क्या मतलब होता है। हम इस खबर में आपको इससे जुड़ी जानकारी दे रहे हैं।


दरअसल, पैन कार्ड पर जो अंक लिखा होता है वह कोई सामान्य सा नंबर नहीं होता है, बल्कि उसमें पैन कार्डधारक के बारे में कुछ जानकारियां शामिल होती हैं। पैन कार्ड जारी करने वाला आयकर विभाग पैन कार्ड के लिए एक विशेष प्रक्रिया का इस्तेमाल करता है। आपके पैन कार्ड पर जो दस अंक लिखे होते हैं उसके मायने हैं। दस डिजिट वाले प्रत्येक पैन कार्ड में नंबर और अक्षरों का एक मिश्रण होता है। इसमें पहले पांच कैरेक्टर हमेशा अक्षर होते हैं, फिर अगले 4 कैरेक्टर नंबर होते हैं और फिर अंत में वापस एक अक्षर आता है। कई बार पैन कार्ड पर लिखे 'ओ' और 'जीरो' देखकर लोग इन्हें पहचानने में कंफ्यूज हो जाते हैं।
पैन कार्ड पर लिखे पहले पांच कैरेक्टर्स में से पहले तीन कैरेक्टर अल्फाबेटिक सीरीज को दर्शाते हैं। आयकर विभाग की नजर में आप क्या हैं यह पैन नंबर का चौथा कैरेक्टर बताता है। अगर आप इंडिविजुअल हैं तो आपके पैन कार्ड का चौथा कैरेक्टर P होगा। ऐसे ही बाकी अक्षरों का मतलब हम आपको बता रहे हैं।
C- कंपनी
H- हिंदू अविभाजित परिवार
A- व्यक्तियों का संघ (AOP)

B- बॉडी ऑफ इंडिविजुअल्स (BOI)
G- सरकारी एजेंसी
J- आर्टिफिशियल ज्युडिशियल पर्सन
L- लोकल अथॉरिटी
F- फर्म/लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनिरशिप
T- ट्रस्ट
इसके बाद पैन नंबर का पांचवा कैरेक्टर आपके सरनेम के पहले अक्षर को दर्शाता है। मसलन, अगर आपका सरनेम गुप्ता है, तो आपके पैन नंबर का पांचवा कैरेक्टर G होगा। वहीं, नॉन इंडिविजुअल पैन कार्डधारकों के लिए पांचवां करैक्टर उनके नाम के पहले अक्षर को दर्शाता है। अगले चार कैरेक्टर नंबर होते हैं, जो 0001 से 9990 के बीच हो सकते हैं। इसके बाद आपके पैन नंबर का अंतिम करैक्टर हमेशा एक अक्षर होता है।

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